Wednesday 2 December 2009

नया चेहरा

आज से अपने चेहरे पर नया चेहरा चढ़ा लेते हैं
अपने ख्यालों को उसके पीछे छुपा लेते हैं
अपने ही कभी कहते हैं हमें
आपका चेहरा बहुत बोलता है
हँस के कहते हैं हम
की हम भी कहाँ कम बोलते हैं
जो नज़रें हमारी बहुत कुछ कह जाती हैं
उन आँखों पर परदे चढ़ा लेते हैं
चुप्पी में जो ताले यहाँ वहां खुले थे
उन लफ़्ज़ों पर ताले लौटा देते हैं ।
जो वाकिफ हैं हमसे
बिना बोल समझ लेते हैं
बाकियों से क्या, बोलें न बोलें
इसीलिए, यह चेहरे के परदे
अब अपने लफ़्ज़ों पर भी चढ़ा देते हैं ।
चुप्पी का दायरा कभी भी नहीं था
पर लफ़्ज़ों का कहा अब बंद कर देते हैं
ख्यालों में भी कब कम ही कहा हमने
पर नजरों में वे ख्याल अब लाते नहीं हैं
अपनी चुप्पी से हम कुछ जताते नहीं हैं ।

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