आज से अपने चेहरे पर नया चेहरा चढ़ा लेते हैं
अपने ख्यालों को उसके पीछे छुपा लेते हैं
अपने ही कभी कहते हैं हमें
आपका चेहरा बहुत बोलता है
हँस के कहते हैं हम
की हम भी कहाँ कम बोलते हैं
जो नज़रें हमारी बहुत कुछ कह जाती हैं
उन आँखों पर परदे चढ़ा लेते हैं
चुप्पी में जो ताले यहाँ वहां खुले थे
उन लफ़्ज़ों पर ताले लौटा देते हैं ।
जो वाकिफ हैं हमसे
बिना बोल समझ लेते हैं
बाकियों से क्या, बोलें न बोलें
इसीलिए, यह चेहरे के परदे
अब अपने लफ़्ज़ों पर भी चढ़ा देते हैं ।
चुप्पी का दायरा कभी भी नहीं था
पर लफ़्ज़ों का कहा अब बंद कर देते हैं
ख्यालों में भी कब कम ही कहा हमने
पर नजरों में वे ख्याल अब लाते नहीं हैं
अपनी चुप्पी से हम कुछ जताते नहीं हैं ।
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