Wednesday 15 June 2011

Medical Kit & A Plumber's Tools



















Next time,  i decide to fall in love,
I am going to keep these with me.

God knows... i keep needing them with great regularity !

Thursday 2 June 2011

बड़े होना

खा रहे थे हम दोनों
बर्फ मलाई
अरे वही... अपनी आइसक्रीम .. और क्या
खाते खाते .. कुछ शरारत थी सूझी
हमें भी और तुम्हें भी.
तुमने अपनी orange  बार
झाटक से मेरी स्कूल शर्ट में डाली
और भाग खड़ी हुईं.

और मैंने... अपनी orange बार
उठा तुम्हारी शर्ट पर लिखा- ११ 
वही,  तुम्हारा नंबर
स्कूल टीम की टीशर्ट पर जो था.
दोनों कि कमीजें
बचपन के रंग में
दोस्ती के रंग में
उस Orange बार के रंग में
रंग नारंगी हो गयीं.
और हम
भागते हुए..हँसते हँसते घर पहुंचे.

माँ ने एक नज़र हम पर डाली,
और एक शर्ट पर..
लगाई हुड़क कर डांट
उफ़ इतनी घोड़ी हो गयी हो..
बचपन गया ही नहीं...
माँ क्या कहूं...
आज भी वैसी हूँ...
बचपन इतना हसीं था
कि ज़हन से जाता ही नहीं..
कहीं छिप कर रहता है..
और बीच बीच में...
बिन बताये,
आ जाता है..
पल दो पल को..
झलक दिखला ...भाग खड़ा होता है.
फिर बता जाता है
कि शायद बदली तो हूँ
पर कहीं बदली नहीं हूँ
कभी-कभी अपना वो बचपन
अपने बच्चों के बचपन
में दिख जाता है...

कई बार सोचती हूँ मां..
कि क्या ज़रूरी था
बड़े होना!!
पर जीवन का दौर ऐसा
हाँ... शायद ज़रूरी था
बड़े होना.

Wednesday 1 June 2011

चावल के दाने



चावल के दाने ...
सफ़ेद..
शायद खुदा ने.. मोती दे दिए
स्वाद भरे, सेहत भरे.

छिपे हुए मोती,
खुरदुरे से खाल में
जिसे छील छील
हाथों में छाले पड़ जाएँ
और .. बीनते बीनते..
उँगलियों में दरारें

पर क्या ही यथार्थ है
कि जिन हाथों को
यह मेहनत नसीब होती है
हमारे देश में ..
उन्हें ही इन दानों के लिए
और न जाने क्या क्या
पापड़ बेलने पड़ते हैं!!

और हाँ, पापड पर याद आया..
सूखी रोटी और मिर्च प्याज़ से
गुज़ारा करने वाले हाथ
पापड़ बनाते तो हैं
पर खा पाने का चाव
पता नहीं ... कब नसीब से नसीब में आये.

और कहते हैं.. देश तरक्की पर है..
कुछ कोने.. कुछ सडकें, कुछ घर
पर झोपड़ियाँ, खपरैल, खेत खलिहान
शायद वहीँ के वहीँ.... सूखे... दरारों वाले!
यह इस बढ़ते हुए देश की विडम्बना है.