Saturday 30 April 2016

तुम सब हो मेरे पर फिर भी... नहीं












तुम मेरी आशाओं का मंज़र 
तुम नदिया का किनारा 
तुम मित्र मेरे प्रगाढ़ 
तुम मेरे हमनवां 
यह सब हो कर भी तुम 
न साया मेरा 
न मेरा हिस्सा 
हो मुझसे 
हो मुझमे 
पर होकर 
भी नहीं 
न मुझसे 
न मुझमे 
अपनी हमसफ़र 
मैं खुद 
अपनी रहगुज़र 
मैं खुद 
अपना साया 
मैं 
अपना आसरा 
मैं 
अपना मुस्तकबिल 
मैं 
अपनी परछाई 
मैं 
मैं सबला 
मैं चेतना अपनी 
मैं संवेदना अपनी 
न माँगूँ तुमसे 
एक  कतरा भी 
राहें जुडी हैं 
अलग भी हैं काफी 
मैं अपने में पूरी 
तुम खुद में ही पूरे 
हांलाकि दोनों 
हैं आधे अधूरे 
पर यह भी सही है 
सच भी है इसमें 
यह अधूरी कहानी 
पूरी सी है 
मैं खुद में खुश हूँ 
तुम अपने में 
 ऐसे ही अच्छे 
हम तुम अकेले 


तुम सब हो मेरे 
पर फिर भी... नहीं हो