Thursday 29 April 2010

जी लिए ..


ज़िन्दगी जी लिए ...
कुछ ही पलों में
ख्यालों की चादर तान
पेड़ की छाँव तले
प्यार के कुँए के पास
प्याज़ और मिर्ची के साथ
रोटी चख
एक लोटा मीठा पानी पी
ज़िन्दगी जी लिए
बड़ी हसीन सी
एक पल की लम्बी ज़िन्दगी
हर लम्हा जी लिए !

Wake Up Call!

Umm...is it daylight already??
Rise and shine..Whee.
People..can you not be cheerful at Zero hr every morning?
And why is the television blaring?
ZZZZZZ!

Friday 16 April 2010

Do Bears Hibernate in Summer?

This Sloth Bear Does...

Living

Yes ..yes....yessss....
ya..yeah...yeah...yeah..yeah..

Am I?

Monday 5 April 2010

हाय रे... कहाँ गए वो दिन!!


नज़रों की ताकत ढलने लगी है
यौवन की बौछार ढलने लगी है
मोटापे की चादर चढ़ने लगी है
समझा करो जानम
इशारों की भाषा
हुस्न ही नहीं
साथ ही
तुम्हारी उम्र भी ढलने लगी है !

वो कहते थे हमको
जान जो अपनी
आँखों पे चश्मा
अब मोटा पहनते
जो होठों की लाली के गाते थे नगमे
वो अब मीठे से
परहेज़ है करते
समझो तो समझो
न समझो तो क्या हो
समझा करो जानम इशारों की भाषा
हुस्न ही नहीं
साथ ही
तुम्हारी उम्र भी ढलने लगी है !

वो चलती थी सीटी
जब चलते थे हम भी
वो सीटी अब फी फी बजने लगी है
जो कसते थे फबते
जब गुज़रा करते थे
अब वो भी जर्जर
करते हैं खौं-खौं
हम भी थर थर
बदलते हैं रस्ता
ये ज़िन्दगी की
कौनसी सीढ़ी है
समझा करो जानम इशारों की भाषा
अरे बाबा
तुम्हारी उम्र अब ढलने लगी है !!!