Tuesday, 15 June 2010

मित्र

बचपन का इक मित्र हमारा
मिल जाता हर मोड़ पर हमसे
बात एक ही हर बार कर जाता
और दिल का दर्द बढाता
न न ऐसी बात नहीं है
दिल पर अब आघात नहीं है
सुनने के हो गए है आदी
उम्र अब कट गयी है आधी
पर अब भी वो बात है कहता
बचपन में जिससे छेड़ा करता
अब - जब भी वो बात है करता
बचपन का अहसास है रहता ॥
"तब करती थी तुम दो चोटी
पर तब भी तुम थीं तो मोटी ! "
कहता है "अब भी हो मोटी
बदली नहीं जबसे थी छोटी
कुछ तो अपना size निहारो
Weighing Scale को ज़रा उबारो
तुम अब भी मोटी हो "मोटी"!!"
ऐसे पागल मित्र हमारे ... न जाने क्यों लगे हैं प्यारे !

Thursday, 10 June 2010

Hallucinations and Wanderings of the Mind

Do they happen to everyone,
or are they just "one of those things" induced??
Sniff .... Snort??????

Seeing Things


The reflective index of my mirror is indirectly proportional to the refractive index of my glasses.

Not yet squint-eyed with the effort. But soon.....

Pleasures


Some pleasures in life..are meant to be indulged in
By sticking out a tongue...and slurping them up.

Why do you have to be pious .... all the time??

गलती


ज़िन्दगी का पूर्णविराम नहीं
उसे अल्पविराम बना
कुछ अच्छा नफीज़ सा
िखिए .....
ताकि पढने वाले
कुछ उस से सीख
अपने पन्ने रंगीन बनाने की
उम्मीद रख सकें।

Friday, 4 June 2010

Chocolate Sundae

My Chocolatey Chocolicious Chocomanic Sundae
Has to be Imported.
Duty Free.
Hersheys and Lindt
Cadbury's and whatever.
Unfortunately,
there is no "Offer of the Day"
In Duty Free
I wish there was a better way to say this word.
नहीं, नहीं, कभी नहीं.....!!!
perhaps!!

Sometimes, even seven languages fall short.
Maybe a hammer will help !! :)

How are you?

And such sundries.

Why do you ask?
Concerned?
Curious?
Elated?
Happy?
Blaise'?
Complacent?

If it actually does not matter to you, please, shhhh then.
It doesn't make it any different for me, any which way, whether you ask or not.
OK????

Wednesday, 2 June 2010

पूर्णिमा

चलता है चाँद अपनी रफ़्तार से
पर अपनी पूर्णिमा
तो दोमाही है
कभी कभी
कतार में खड़े होने पर
नंबर आने पर
मिलती है।
राशन की लम्बी लाइन
और हमारा नंबर आते आते
खिड़की बंद भी हो जाती है ।

दिखाई देती है
चाँद की चांदनी
किसी बैंक के लाकर में
रखी चांदी की तरह ,
जिसे देखने के लिये
एक अपनी चाबी
एक किसी और की कुंजी
का इस्तेमाल करना पड़ता है
और बस
ज़रा सा देख,
झाड पोंछ
वापस रख दिया जाता है ।
हाँ कभी कभी शौकिया
इस चांदनी को
हम पहन भी लेते हैं
पर बस, कभी कभी!!
ऐसी ही है
हमारी पूर्णिमा की चांदनी !

High Tide - Low Tide

The story of my life..
Sometimes it pulls me in..
Sometimes i am thrown out..
Fortunately,
Sanity is my Buoyancy
Always there.
Like a Big Inflated Float.
Dependable,
Boring,
Steady!