Tuesday 15 June 2010

मित्र

बचपन का इक मित्र हमारा
मिल जाता हर मोड़ पर हमसे
बात एक ही हर बार कर जाता
और दिल का दर्द बढाता
न न ऐसी बात नहीं है
दिल पर अब आघात नहीं है
सुनने के हो गए है आदी
उम्र अब कट गयी है आधी
पर अब भी वो बात है कहता
बचपन में जिससे छेड़ा करता
अब - जब भी वो बात है करता
बचपन का अहसास है रहता ॥
"तब करती थी तुम दो चोटी
पर तब भी तुम थीं तो मोटी ! "
कहता है "अब भी हो मोटी
बदली नहीं जबसे थी छोटी
कुछ तो अपना size निहारो
Weighing Scale को ज़रा उबारो
तुम अब भी मोटी हो "मोटी"!!"
ऐसे पागल मित्र हमारे ... न जाने क्यों लगे हैं प्यारे !

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