Monday 5 April 2010

हाय रे... कहाँ गए वो दिन!!


नज़रों की ताकत ढलने लगी है
यौवन की बौछार ढलने लगी है
मोटापे की चादर चढ़ने लगी है
समझा करो जानम
इशारों की भाषा
हुस्न ही नहीं
साथ ही
तुम्हारी उम्र भी ढलने लगी है !

वो कहते थे हमको
जान जो अपनी
आँखों पे चश्मा
अब मोटा पहनते
जो होठों की लाली के गाते थे नगमे
वो अब मीठे से
परहेज़ है करते
समझो तो समझो
न समझो तो क्या हो
समझा करो जानम इशारों की भाषा
हुस्न ही नहीं
साथ ही
तुम्हारी उम्र भी ढलने लगी है !

वो चलती थी सीटी
जब चलते थे हम भी
वो सीटी अब फी फी बजने लगी है
जो कसते थे फबते
जब गुज़रा करते थे
अब वो भी जर्जर
करते हैं खौं-खौं
हम भी थर थर
बदलते हैं रस्ता
ये ज़िन्दगी की
कौनसी सीढ़ी है
समझा करो जानम इशारों की भाषा
अरे बाबा
तुम्हारी उम्र अब ढलने लगी है !!!

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