Monday 25 January 2010

एक और प्रेम विवाह

एक और प्रेम विवाह
हम देख आये
वर वधु को आशीर्वाद
भी जी भर दे आये
नाच लिए
गा लिए
ढेरों पकवान खा लिए
हंसी-ठट्टा खूब कर लिया
जेवर कपडा लत्ता
मन भर पहन लिया
ठण्ड खूब पड़ रही थी
कंपकपी छूट रही थी
पर हम भी पंजाबी ठहरे
व्याह है कह डटे रहे
खाने पीने में न करी कोई कोताही
हो हुल्लड़ मचाने में
हमसे पीछे दुनिया सारी ।

अब चुप चाप बैठ
वो दिन गुण रहे हैं
उफ़ हाय
यह न खा पाए
अरे वो छूट गया
सोच सोच मलाल कर रहे हैं
अजीब हैं हम सब
भाई बंधू हम सारे
ब्याह कराने गए
कि खाने भर के
रिश्तेदार हैं हम सारे
गए खाए गए आये
ऐसे हालात तो न थे हमारे ।

काम भी तो पूरी लगन
से कर के आये हैं
बहन जो ब्याहनी थी
दूल्हे मियां के नखरे न सही
जूते तो उठाने थे
हवन के लिए
घी तो बटोरना था
द्वार रोकना
मेहंदी लगवाना
चाय नाश्ता
हम ने ही तो करवाया
वो न बताएँगे
कि कितना किया
कितना करवाया
बस पूरी मुस्तैदी से
काम कर आये हैं
सारे रिश्तेदारों को
हंसी ख़ुशी विदा कर के आये हैं ।

दुल्हन टिकी रहे ससुराल में
इंतज़ाम कर के आये हैं
दुल्हे मियां बच के रहे
दुल्हन सुन्दर बड़ी है
उनके दिल की चाबी
दुल्हन के पास पड़ी हैं
एक नज़र के इशारे से
घायल हो जायेंगे
और हमारी बहन के हुस्न के
कायल हो जायेंगे
गुण भी उसके बहुतेरे हैं
तभी तो दुल्हे मियां
उसके इर्द गिर्द
लट्टू बने फिरे हैं!!

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