कहते हैं कि दूर हैं , पर दूर तो नहीं
कहते हैं कि पास हैं , पर पास भी तो हैं नहीं
हैं , इतना तो हकीकत है
पर हैं कहाँ , जो होकर भी हैं नहीं।
रह-रह सोचा करते हैं यह ख्याल बैठे-बैठे
ज़िन्दगी के कई नग़मे ऐसे हैं
जो हैं भी तो पर हैं ही नहीं ।
कई दुःख ऐसे हैं जो आज सच ,कल सपना बन जाते हैं
हकीकत है ज़िन्दगी, पर सपना क्यों लगती है
पाए जो लम्हे हैं, वो ख्याल क्यों लगते हैं
और जो ना पाए वो हकीकत क्यों लगते हैं
कभी सपने सच लगते हैं, कभी सच इक सपना
जिसे देख देख हम खुद सकते में रहते हैं
भूल भुलैया से ये ख्याल...
न जाने क्यों उठते रहते हें॥
यह सोचने कि बीमारी हमारी
न जाने कब जाएगी
जायेगी तो यह सोचेंगे
कि क्यों चली गयी,
पड़ी रहती, क्या ही बुरी थी ॥
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