Friday 8 January 2010

क्यों याद आते हो ...

वक़्त, लम्हे, आवाज़, अहसास,
क्यों याद आते हो सब
वो भी
जब यादें कुछ कर नहीं सकतीं
और याद कर कुछ हासिल नहीं
न ख़ुशी, न दर्द
तो क्यों
क्यों वहीँ नहीं रहते
ज़हन के कोने में
क्यों चले आते हो
चलचित्र की तरह
आँखों के सामने
और अपने आप को
दोहरा दोहरा
अतीत में पहुंचाते हो
ओ वक़्त, ओ लम्हे ...
तुम
क्यों याद आते हो!

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