न शब्दों की बनावट
न हाथ की लिखावट में सिमटे आभास
न लफ़्ज़ों में छिपते टिमटिमाते अहसास
न आंसुओं के मोतियों से पिरोई हुई माला
न आंसुओं के मोतियों से पिरोई हुई माला
न अरमानों की खुशबू से महकते शब्द
न आशाओं का कोई चमकता तारा
न लफ़्ज़ों की चादर लिपटे ठट्टा-मज़ाक ।
इन सब से मिले अरसे हो गए हैं
लिखे हुए खतों को पढ़े बरस हो गए हैं
इन्टरनेट को ज़माने में अहसास खो गए हैं
ख़त लिखने का नशा आदम भूल गए हैं
वो लिखना और इंतज़ार का सबब भूल गए हैं
शब्दों में छिपे शब्द ढूँढना भूल गए हैं
शब्दों पर उँगलियों फेर समझना भूल गए हैं
क्या कहें दोस्तों,
हम इंतज़ार करना न भूले
पर दोस्त हमारे,
ख़त लिखना भूल गए हैं !
2 comments:
ख़त और लिफाफे पे ब्लॉग
बहुत सुन्दर
एक दुसरे से चोली दामन का साथ होते हुए दोनों ब्लोग्स में भावनाए अलग अलग
फिर भी एक जुड़ाव,
इसको पढ़ते हुए V P Singh की दो लाइनें याद आ गयी..
ख़त उनका होगा , मज़मून तुम्हारा होगा..
लिफाफे की तरह, मैं ही बीच में फाड़ा गया होऊंगा.
कमसे कम इन्टरनेट के ज़माने में लिफाफे को फटना तो नहीं पड़ता :)
पर सच में खतो की तो अब यादें ही रह गयी हैं , लिखना जुबां से लिफाफे को चिपकाना , आये हुए खतों से डाक टिकेट निकालना
( कुशल पूर्वक रहते हुए आपकी कुशलता की कामना करते हैं और इश्वर से आपके ऐसे ही सुन्दर सुन्दर लिखते रहने की कामना करतें हैं.
आपके अगले ब्लॉग की प्रतीक्षा में .
एक reader )
और लिफाफे में चिठ्ठी को सहेजकर रखना
और जब जी किया .. निकाल फिर पढना
और यादों को ताज़ा करना
दुःख भरी चिठ्ठी हो
तो हर बार पढ़
आंसुओं से उस निरीह कागज़ को भिगोना
एक वो भी समां था..
एक आज भी हकीकत है
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