Tuesday 2 June 2009

अक्षर कभी यूँ टूट पड़ते हैं


अक्षर कभी यूँ टूट पड़ते हैं
कि उल्टे पुल्टे, मुडे टुडे
कागज़ पर छलक ही पड़ेंगे, टपक ही पड़ेंगे
अक्षर कभी यूँ बाढ बन कर पड़ते हैं,
कि सारे विचार, सारा वजूद बहा ले जायेंगे
पत्तियों, डालियों, घास के घर कि तरह...
कभी कहना चाहता है बहुत कुछ यह दिल
कभी सुनना चाहता है, बहुत कुछ यह दिल
पर अक्षर कहाँ सुनना चाहते हैं
बस बरस पड़ते हैं, ओलों को तरह
और कहा सुना, सब उनके शोर में,
लुप्त हो जाता है।

विचारों का यह झुरमुट
कभी यह आम के वृक्ष कि छाँव बन,
कभी यह पीपल का चौबारा बन ,
कभी यह रात के जंगल कि तरह,
लहराता है, सरसराता है
और विचारों का विचलित
मन सहम जाता है।

विचारों का यह झुरमुट
कभी कभी सहरा भी बन जाता है
जहाँ सायं सायं लू चलती है और कभी
हिमालय की वादियाँ बन जाता है
जहाँ हर शब्द
एक शीतल झोंका सा लगता है
जो गालों को सहलाता है,
मन को खूब भाता है
जहाँ तन कि तड़पन को राहत मिलती है
और सांसों का रेला फिर चल जाता है।

विचारों का यह झुरमुट शायद
मेरा हिस्सा बन गया है
दिल की धड़कन, रगों का खून बन गया है
जो हर कदम पर पूछता है मुझसे सवाल
और हर पल देता है मुझे जवाब
यह तो मेरे वजूद, मेरे अस्तित्व
का अंश नहीं, सरमाया बन गया है।
अक्षर बन जाते हैं वाक्य
वाक्य बन जाते हैं विचार
विचार बन गए हैं धड़कन,
धडकनों के साथ अब यह शब्द,
मेरे जीने का कारण बन गए हैं।

1 comment:

ShantanuDas said...

yeh hindi... thora difficult hai mera liyey.. so i M SORRy that i am not commenting.. except that I bet 1000/- this is also as good a post as your english ones...

hehe!