चावल के दाने ...
सफ़ेद..
शायद खुदा ने.. मोती दे दिए
स्वाद भरे, सेहत भरे.
छिपे हुए मोती,
खुरदुरे से खाल में
जिसे छील छील
हाथों में छाले पड़ जाएँ
और .. बीनते बीनते..
उँगलियों में दरारें
पर क्या ही यथार्थ है
कि जिन हाथों को
यह मेहनत नसीब होती है
हमारे देश में ..
उन्हें ही इन दानों के लिए
और न जाने क्या क्या
पापड़ बेलने पड़ते हैं!!
और हाँ, पापड पर याद आया..
सूखी रोटी और मिर्च प्याज़ से
गुज़ारा करने वाले हाथ
पापड़ बनाते तो हैं
पर खा पाने का चाव
पता नहीं ... कब नसीब से नसीब में आये.
और कहते हैं.. देश तरक्की पर है..
कुछ कोने.. कुछ सडकें, कुछ घर
पर झोपड़ियाँ, खपरैल, खेत खलिहान
शायद वहीँ के वहीँ.... सूखे... दरारों वाले!
यह इस बढ़ते हुए देश की विडम्बना है.
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