Wednesday 26 May 2010

चलो... चलें??

यह कहती हमेशा ही बेटी हमारी
माँ चलो... चलें॥

चाहती जो हर चीज़ वो
करवाना जो काम हो
बुनियाद उसकी हमेशा
चलो ... चलें??

चलते हैं साथ अभी तो ये बच्चे
और मांगे भी साथ अभी तक ये बच्चे
चाहे काम उन्हीं के आधे अधूरे
और पर्चे हजारों जो करने हो पूरे

वक़्त का वो मोड़ नज़र रहा है
जहाँ से सडकें मुड़ी जा रही हैं
जो चलती हैं साथ अब तक अभी तक
वो मंजिल अपनी बदल जा रही हैं

दीखता वो मोड़ हर लम्हा हर पल है
पर हम भी उसे देखते ही नहीं हैं
जो है सच जान कल की ही सच्चाई
हम ख्यालों में पीछे धकेले हुए हैं

ये राहें वहीँ है जो मुड कर कभी भी
अलग राह अपनी ले कर ही रहेंगी
आज फिर भी चले हैं बेटी के साथ हम
क्यों सुनें उसका - चलो..चलें???


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