Sunday 22 November 2009

ख्याल


ख्याल हकीकत हैं,या हकीकत ख्याल
रोज़ सोचना और मेरा होना बेहाल
सोचते ही और ख्याल आते हैं
और हकीकत को कुछ और धुन्दला ज़ाते हैं!

कई- कई बार यह तो समझ नहीं पाते हम
कि अनेकों ये चाहते सही हैं कि ग़लत
समझ नहीं पाते , या समझना नहीं चाहते
यह भी ख्याल और हकीकत के दायरे
के बीच का एक और ख्याल है !

चाहते इंसान की तो बहुत होती हैं
कुछ सही ,कुछ ग़लत , बे-बुनियाद होती हैं
सही चाहते अपना रास्ता ख़ुद ही निकाल लेती हैं
और ग़लत कहीं रास्ता ढूँढ़ते-ढूँढ़ते
ख़ुद गुम हो जाती हैं ।

कुछ ख्याल ऐसे जो कभी भी न बन सके हकीकत
और कुछ चाहतें ऐसीं, जो सच्चाई से कोसों दूर
हकीकत बनने के काबिल ही नहीं
उन्हें वहीँ टंगा रहने देते हैं,
अहसासों की दीवारों पर
वहीँ सजीं अच्छी लगती हैं !

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