Sunday, 15 November 2009

लडाई झगडे

क्यों करते हैं हम
रोज़ एक लडाई
कभी अपनों से
कभी परायों से
कभी अपने आप से
कभी हालातों से
कभी जज्बातों से
कभी विचारों से ?
क्या ज़िन्दगी
इन बड़े बड़े शहरों में
सिर्फ़ एक रोजाना की
जद्दो-ज़हद बन रह गई है ?
क्या यह बड़े शहर
छोटे छोटे जज्बातों को
ख्यालों को
अहसासों को
सहेज कर नहीं रख सकते?
क्या यहाँ आकर
लोग प्यार
दुलार
संस्कार
सब भूल जाते हैं?
या यहाँ की तेज़ ज़िन्दगी
इन सब को कुचलती हुई
रेस की गाड़ी की तरह
निकल जाती है ?

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