रिश्तों के गुत्थम गुत्थे
क्यों इतने पेचीदे होते हैं
यूँ ऊपर से नीचे और
नीचे से ऊपर जाते हैं
दायें से बायें
और बायें से दाएं जाते हैं
आगे से पीछे
और पीछे से आगे आते हैं
और हम...
ऊन और बिल्ली
की तरह
उनमें उलझ जाते हैं
यह बातें हम आज तक समझे नहीं
पर कहीं दिमाग और दिल में
जंग हो रही है
एक कहता है
समझ गया!!
और दूसरा
क्या...क्या समझें!!
बस... एक और कशमकश और हम
क्या और कहाँ कहाँ लड़ें
बस...छोड़ दिया!!
Thursday, 8 October 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Licence
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-Noncommercial-No Derivative Works 2.5 India License.
No comments:
Post a Comment