Saturday, 30 April 2016

तुम सब हो मेरे पर फिर भी... नहीं












तुम मेरी आशाओं का मंज़र 
तुम नदिया का किनारा 
तुम मित्र मेरे प्रगाढ़ 
तुम मेरे हमनवां 
यह सब हो कर भी तुम 
न साया मेरा 
न मेरा हिस्सा 
हो मुझसे 
हो मुझमे 
पर होकर 
भी नहीं 
न मुझसे 
न मुझमे 
अपनी हमसफ़र 
मैं खुद 
अपनी रहगुज़र 
मैं खुद 
अपना साया 
मैं 
अपना आसरा 
मैं 
अपना मुस्तकबिल 
मैं 
अपनी परछाई 
मैं 
मैं सबला 
मैं चेतना अपनी 
मैं संवेदना अपनी 
न माँगूँ तुमसे 
एक  कतरा भी 
राहें जुडी हैं 
अलग भी हैं काफी 
मैं अपने में पूरी 
तुम खुद में ही पूरे 
हांलाकि दोनों 
हैं आधे अधूरे 
पर यह भी सही है 
सच भी है इसमें 
यह अधूरी कहानी 
पूरी सी है 
मैं खुद में खुश हूँ 
तुम अपने में 
 ऐसे ही अच्छे 
हम तुम अकेले 


तुम सब हो मेरे 
पर फिर भी... नहीं हो




Friday, 29 January 2016

किसको पड़ी है


तुम आ जाते हो रोज़
दोस्तों के बहाने
बचपन की कॉलेज की
टेंपररी दोस्ती  निभाने
वही पुराने कहकहे 
अटकलें लगाने 
लेकिन, कुछ कहूँ आज तुम्हें?
तुम आओ न आओ यार
किसको पड़ी है ?

अड़ जाते हो तुम
बेतुकी सी बातों पर
स्त्री और पुरुष के
उलझे से नातों पर
मनु की मनुवाद की
दक़ियानूसी बातों पर
कुछ कन्फ्यूसिंग इडिओटिक 
जज़्बातों पर 
लेकिन सच कहूँ यार
किसको पड़ी है ?

वो दोस्ती भी
तब थी अब नहीं है
और तुम और मैं
बिलकुल अजनबी हैं
तुम रेगिस्तन के राही
हम पथरीले कंटीले
और दुनियादारी के
बहुत हैं झमेले
अब दोस्ती भी रहने दो यार
मुझे तो बिलकुल नहीं पड़ी है!

Wednesday, 20 January 2016

Inspiration




Lay within me.... 
wonder why i chose to look elsewhere