Wednesday 10 November 2010

प्यार के ख़त

मैं लिखती हूँ तुम्हें
कुछ प्यार के ख़त
कुछ में अरमान
कुछ में आंसू भर
मैं लिखती हूँ तुम्हें
कुछ प्यार के ख़त!

कुछ ख़त ऐसे जो लिखे जाते नहीं
कुछ ख़त ऐसे जो मन से जाते नहीं
कुछ ख़त ऐसे जिनमे लफ्ज़ भर पाते नहीं
कुछ ख़त ऐसे जिनमे फूलों के छंद होते हैं
कुछ ख़त ऐसे जहाँ बारिश की बूँदें संजोते हैं
कुछ खतों में धुप कड़ी सी होती है
झुलसाने वाली...एक एक लफ्ज़ की लड़ी होती है
कुछ ख़त ऐसे आंसुओं का भण्डार जैसे
कुछ ख़त ऐसे मेघ और मल्हार जैसे....
मैं लिखती हूँ तुम्हें... कुछ प्यार के ख़त !


वो ख़त ऐसे कि दुनिया को दिखते नहीं
ये ख़त ऐसे जो सपनों से हटते नहीं
वो ख़त ऐसे जिनमें जूनून है मेरा
ये ख़त ऐसे जहाँ अरमानों का है डेरा
इन खतों को लिख कर भी
अपने से अलग कर पाती नहीं
लाख चाहने पर भी इन्हें
तुम्हें भेज पाती नही
अनकही बातें , अनसुने से शब्द
तुम्हें सुना पाती नहीं... दिखा पाती नहीं.

मैं लिखती हूँ तुम्हें
कुछ प्यार के ख़त ....

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