Friday 10 July 2009

अमलतास के फूल


अमलतास का फूल भी थक गया है,
पेडों से लटक लटक कर,
कहता है हाय !
कितना इंतज़ार कराते हो,
मेघा, कब आओगे!

जब सूरज चढा था, ग्रीष्म का
तब वादा किया था उस से
कि तब तक इंतज़ार करूंगा
जब तक तुम आओगे
और एक वादा लिया था तुमसे
कि तुम आओगे
और बहुत जल्द आओगे
महीनों बीत गए हैं,
और मैं अब भी इंतज़ार कर रहा हूँ
आओ न,
अब क्यों रूठे हो।

अब तो एक-एक करके
मेरी डाल की एक-एक पंखुडी
सूख रही है, मुरझा रही है
तुम्हारे इंतज़ार के हर एक दिन
मैं एक पंखुडी से बिछुड़ जाता हूँ
पर फिर भी टिका हुआ हूँ
और विरह की पीड़ा सहता हूँ
राह देखते तुम्हारी
कि मेघा, आओगे तो
पर न जाने कब आओगे।
अब तो मेरा यौवन भी ढलता जाता है
और पीला रंग, फीका पड़ा जाता है
बेरंग और बेनूर सा हो गया हूं
पर इंतज़ार हैं अनंत
मेघा , आओगे तो
एक दिन ज़रूर आओगे।

और अब आओगे तो
मेरी नई नस्ल होगी
और नया जूनून होगा
नया यौवन होगा
और उससे भी
तुम वही वादे लोगे
और वही वादे दोगे
पर मेघा
तब आ जाना ज़रूर
नहीं तो कठोर-ह्रदय,
धोखे-बाज़ कहलाओगे
और तुमपर से
अमलतास का विश्वास उठ जाएगा
कोई न देखेगा राह तुम्हारी
कोई न करेगा चाह तुम्हारी
इसीलिए,
आ जाना
जब भी वादा करो
आने का।

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